Sunday, January 27, 2019

मेरी हमसफर

कभी कभी दिल सोंचता है बेचैन होकर,
मैं शायरी लिखता क्यों हूँ तेरा नाम लेकर,
क्या मिलेगा मुझे इन बेनाम लफ़्ज़ों को पिरोकर,
मैंने रखा है तेरी यादों को दिल मे संजोकर,
जब भी तड़पता है दिल
लफ्ज़ निकलते हैं अश्क़ बनकर,
हो जाएगी मेरी ग़ज़ल मुकम्मल
चल दोगी जब मेरे साथ तुम मेरी हमसफर बनकर।
#दिलसे

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Thank's a lot
Have a nice Day :)
MD Irfan